Follow us on
Adarsh Kumar Gandhi Fellow, B- 17 Jharkhand

यादगार महीना

फेलोशिप ज्वाइन करने से पहले मुझे इसकी सबसे मजेदार चीज कम्युनिटी हमर्शन ही लग रही थी और तभी से मैं इसके लिए बहुत उत्साहित था । जब मुझे पता चला कि हमारे बैच से यह 2। दिन की बजाय 30 दिन का होने वाला है तो मेरा उत्साह दोगुना हो चुका था। कम्युनिटी इमर्शन में घर मिलने के बाद मैं बहुत खुश था । पहले दिन घर पहुंचने पर जोरदार स्वागत हुआ । घर में जाने से पहले मन में कई खयाल थे कि मैं जो सोच कर जा रहा हूं वैसा होगा या नहीं पर जैसे जैसे दिन बीते मैंने जो सोच था उससे बेहतर ही होता चला गया । घर के सदस्यों सहित गांव वालों से बहुत सम्मान और प्रेम मिला । कभी कभी अपने ऊपर भी संदेह हुआ कि मैं इसके लायक हूं भी या नहीं । 'कम्युनिटी इहमर्शन हाउस की सबसे अच्छी बात यह थी कि उसमें । बच्चे थे । इन बच्चों की वजह से मेरा । महीना काफी अच्छा गुजरा था। उनकी मदद से ही मैं विभिन्न काम करता था । कम्युनिटी में कहीं भी जाना हो उनमें से कुछ हमेशा मेरे साथ ही जाते थे । किसी अनजान दूसरे राज्य से आए किसी व्यक्ति को इतना प्यार और सहयोग मिलेगा भला कौन हो सोचता है । वहां रहते हुए जेगल, बांध, पहाड़ की तरफ जाना सबसे पसंदीदा काम बन गए थे । मैं मैदानी भाग से आता हूं तो मुझे पहाड़ और जेगल बहुत आकर्षित करते हैं। मैं जेगल जाकर वहां बैठकर चारों तरफ पेड़ों को देखता रहता था । पहाड़ के ऊपर चढ़ना मेरे लिए एकदम नया अनुभव था और तभी पता चला कि ऊपर चढ़ना कितना कठिन है। जंगल में जाकर बेर, अमरूद, जंगली करौंदे खाना मेरे लिए नया और सुखद अनुभव था । शहर की भीड़ और शोर से टूर जेगल मन को शांति देता था। "शारीरिक साक्षरता" कार्यक्रम से जुड़े होने के कारण मैं बच्चों को खेल और अन्य शारीरिक गतिविधियों के लिए भी प्रेरित कर रहा था, जिसके माध्यम से वे जीवन कौशल से संबंधित चीजें सीखने में सफल रहेंगे । वे उन गतिविधियों के माध्यम से क्या सीख रहें थे उन्हें यह समझ नहीं आ रहा था पर वे पूरे उत्साह और ऊर्जा के साथ उसमें प्रतिभाग करते थे। घर के अलावा आस पड़ोस के बच्चे भी इसमें शामिल होने लिए आते थे। इससे मुझे उनके साथ गहरे संबंध बनाने में देर नहीं लगी । गांव में विभिन्न कार्यों के लिए जाना पड़ता था, जिसमें घर के काम से लेकर कुछ सामुदायिक कार्य रहते थे । हमें गांव में रहते हुए छात्रवृत्ति और ड्रॉपआउट की समस्या पर काम करना था । इसके लिए मीटिंग आयोजित करना एक बड़ा काम था, खैर गांव वाले इसके लिए सहयोग करतें थे। इसी कारण काफी लोग मुझे जानने भी लगे थे। बच्चों को शाम के समय पढ़ाना और उनसे गांव के बारे में पूछना मेरा पसंदीदा काम बन गया था । उनके अनोखे और नए जवाब मेरी सोच को और विस्तार देते थे । शीतकालीन अवकाश के समय तो बहुत सारे बच्चे पढ़ने के लिए आने लगे थे। उन्हें देखकर मेरा मन लगा रहता था । घर के कामों- धान को उबालना और सुखवाना, आलू खोदना में मना किए जाने के बाद भी हाथ बंटाना सुकून के पल थे । घर के लोगों को द्वारा मेहमान की तरह रखे जाना, जबरदस्ती कपड़े धुल दिए जाना तथा ऐसे ही अनेक प्रकार से खयाल रखना मेरे जीवन में हमेशा अविस्मरणीय पलों के रूप में बस गए हैं जिन्हें मैं चाहकर भी कभी नहीं भूल पाऊंगा।

शुरुआत में लग रहा था कि । महीना कैसे वहां रहूंगा, पर घर और गांव वालों के प्यार और सहयोग से यह एक महीना पता नहीं कब बीत गया था । इस एक महीने में बहुत सारी यादें बन गई थीं । अब वहां से वापस आने की बारी थी । मुझे बिल्कुल भी अंदाजा नहीं था कि मेरे वापस आने की खबर से वे इतने भावुक हो जाएंगे । वहां से वापस आते वक्‍त सबकी आँखें नम थीं । वे मुझे वहीं रुकने के लिए बोल रहे थे, जिस पर मैंने उन्हें बताया कि मुझे वहां से आना होगा । मैंने उन्हें भरोसा दिलाया कि मैं बीच बीच में उनसे मिलने आता रहूंगा । उस दिन 'लगभग 20 मिनट तक मैं घर के बाहर ऑटो वाले भैया को रोके खड़ा सबसे बात करता रहा । उनके उतरे चेहरे देखकर मेरा भी वहां से आने का मन नहीं हो रहा था, खैर मुझे आना ही था तो मैंने अपना हृदय मजबूत किया और वहां से निकल आया । अभी मैं बीच बीच में उनसे मिलने जाता रहता हूं । वे मुझे घर के सदस्य की तरह मानते हैं जिसके कारण वे घर की बातें मुझसे साझा करते हैं । यह एक महीना मेरे लिए हमेशा यादगार रहेगा ।

TAGS

Fellowship corner

SHARE