Follow us on
July 26, 2024 | Anju Kumari Batch-16, Madhya Pradesh

42 हजार+Efforts

मैं अंजू, एक समर्पि त गां धी फेलो , जो सुदूर ग्रा मी ण समुदा य में सका रा त्मक परि वर्तन ला ने के लि ए समर्पि त हूं समुदा य प्रवा स (CI) का र्यक्रम के मा ध्यम से मुझे मध्य प्रदेश के खरगो न जि ले के एक छो टे से गां व, दुर्गा पुर की जी वनी को करी ब से जा नने का अवसर प्रा प्त हुआ। पहा ड़ि यों में बसा दुर्गा पुर, प्रा कृति क सौं दर्य से भरपूर था , लेकि न वि का स की कमी , गरी बी , और जा ति गत असमा नता की एक कठो र सच्चा ई भी यहाँ छि पी हुई थी |

मैंने गां व में उमेश या दव जी के परि वा र के सा थ रहने का फैसला लि या । उमेश जी गां व के सरका री स्कूल के एसएमसी अध्यक्ष, गां व के वॉ टरमैन और कि सा न थे। मंदि र की घंटी की आवा ज़ के सा थ सुबह हो ती और महि ला ओं के भजनों के सा थ शा म ढलती थी । सुबह-सुबह महि ला ओं के सा थ शि व मंदि र में पूजा करना , उनकी कहा नि यां सुनना , उनकी मुश्कि लों को समझना , उनके री ति -रि वा जों को सी खना - ये कदम थे, जो दुर्गा पुर को मुझसे और मुझे दुर्गा पुर से जो ड़ने के नीं व बन रहे थे।

इसी बी च गां व के स्कूल ने मेरे ध्या न को अपनी ओर खीं चा । 69 बच्चों के सा थ, यह स्कूल सी मि त संसा धनों और अव्यवस्था से जूझ रहा था । कक्षा एं ठंडे फर्श पर चलती थीं , जूतों का अभा व था , और ड्रेस अक्सर गंदे और फटे रहते थे। स्कूल की दयनी य स्थि ति ने मेरी रा तों की नीं द उड़ा दी । ठंडे फर्श पर सि कुड़ते बच्चे, फटे कपड़े और जूतों की कमी , ये तस्वी रें मेरी आत्मा को ची रती थी । फंड जुटा ना ही एकमा त्र रा स्ता था , लेकि न दुर्गा पुर गरी बी का पर्या यवा ची था । मैंने गां ववा लों के दरवा जे खटखटा ए, हर "नहीं " से मेरा हौ सला पस्त हो ता , पर बच्चों के चेहरों का ख्या ल मुझे हौ सला देता । मैं पंचा यत के सा मने दली लें करती , उनकी जकड़ता तो ड़ने की को शि श करती , मा नो एक पत्थर के दि ल को तो ड़कर उसमें उम्मी द का बी ज बो रही हूँ। एक शा म, बा रि श ने दुर्गा पुर को आतंकि त कर रखा था । छत टपक रही थी , चिं ता मेरे दि मा ग पर हथौ ड़े चला रही थी । क्या मेरा पूरा प्रया स इसी तरह बह जा एगा ? तभी उमेश चा चा जो हमा रे मेजबा न थे, ने कंधे पर हा थ रखा , "बि टि या , बा रि श रुक जा एगी , वैसे ही तेरी को शि शें भी रंग ला एंगी । उनकी आवा ज में एक ऐसी दृढ़ता थी जि सने मुझे दो बा रा खड़ा कर दि या ।

हफ्तों के जद्दो जहद के बा द एक चमत्का र हुआ। PRI ने ₹5,000 दि ए, ग्रा मी णो ने ₹13,000 जुटा ए, और धी रे-धी रे पैसे बरसने लगे और कुल मि ला कर ₹42,000 की धनरा शि इकट्ठा हुई जो कभी असंभव लग रही थी । मेरी आंखें नम हो गईं, “वो पसी ने और जुनून के मि श्रण नहीं जी त के आंसू थे”। आखि रका र, वह दि न आ गया । 26 January 2024, नई, चमचमा ती टेबल-कुर्सी स्कूल में लग गई जि से देख बच्चों के चेहरे खुशी से खि ल उठे। उनके जूते चमक रहे थे, उनके कपड़े सा फ सुथरे थे। अनुशा सन की एक लहर कक्षा में दौ ड़ पड़ी , मेरे सी ने में गर्व फूट पड़ा , मेरी आवा ज गहरी हो गई और मेरे अन्तरा तमा से एक आवा ज नि कली “अब से मेरे बच्चे ठंडी जमी न पर नहीं बैठेंगे।"

पूरे CI के दौ रा न, मैंने अपने पूरे गाँ व के बच्चों के लि ए शा म की कक्षा एं शुरू की । सूरज के डूबते ही गां व अंधेरे में सा मने लगता था लेकि न इस छो टे समूह में रो शनी की एक द्वी प जलती थी । पहले दि न, सि र्फ नौ बड़ी -बड़ी आंखें मेरी तरफ सवा लि या नि शा न छो ड़ रही थीं , लेकि न मेरी आवा ज और हिं दी के शब्द ने सभी को मेरी ओर आकर्षि त कि या । सप्ता हों के भी तर, मैंने 45 उत्सा ही बच्चों को पढ़ा या , लेकि न स्था न की कमी और सा मा जि क रूढ़ि वा दि ता ने मुझे रो का । मुझे उन्हें शि व मंदि र (जहाँ मैं सुरुआत मे कक्षा ए चलती थी ) से लेकर या दव धर्मशा ला तक लेकर जा ना पड़ा , लेकि न यहाँ भी एक दी वा र थी , जो हरि जन बच्चों के प्रवेश वर्जि त कर रही थी । मैंने लो गों को समझा या कि शि क्षा में जा ति का भेद-भा व नहीं हो नी चा हि ए, लेकि न रूढ़ि वा दि ता की चुप्पी मेरी को शि शों को रो क रही थी । मैंने सरपंच से मि लकर उन्हें शि क्षा के महत्व को समझा या । अन्ततः उन्हों ने में सा र्वजनि क भवन की मंजूरी दी । जहाँ अब शा म की कक्षा एं गुलजा र थीं ।

TAGS

Community Immersion Experiences

SHARE